ब्रेकिंग न्यूज़

टाइम कैप्सूल क्या होता है , भारत में किस जगह डाला गया है : आइए जाने

  • एक कैप्सूल का काम होता है किसी समाज, काल या देश के इतिहास को संजो कर रखना. ताकि जब भविष्य की पीढ़ी के हाथ वो लगे, तो उन्हें अतीत की किताबों के पन्नों पर लिखा हर अक्षर मालूम चल जाए।

  • पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की एक कविता की पंक्तियां हैं- हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं. आज हम जिस चीज के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, उसके लिए ये पंक्तियां सटीक बैठती हैं. हम बात कर रहे हैं टाइम कैप्सूल की. हो सकता है ये शब्द आपने पहले कभी सुने हों. लेकिन अयोध्या में 5 अगस्त को राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन से पहले टाइम कैप्सूल अचानक चर्चा के बाजार में आ गया. आइए आपको बताते हैं कि टाइम कैप्सूल का इतिहास क्या है।
टाइम कैप्सूल धातु के एक कंटेनर की तरह होता है, जिसे खास तरीके से बनाया जाता है. टाइम कैप्सूल हर तरह के मौसम और हर तरह की परिस्थितियों में खुद को सुरक्षित रखने में सक्षम होता है. उसे जमीन के अंदर काफी गहराई में रखा जाता है. काफी गहराई में होने के बाद भी न तो इसे किसी तरह का नुकसान पहुंचता है और ना ही वह सड़ता-गलता है. एक टाइम कैप्सूल का काम होता है किसी समाज, काल या देश के इतिहास को संजो कर रखना. ताकि जब भविष्य की पीढ़ी के हाथ वो लगे, तो उन्हें अतीत की किताबों के पन्नों पर लिखा हर अक्षर मालूम चल जाए।

खैर इस बात पर काफी चर्चा होती है कि टाइम कैप्सूल सबसे पहली बार कब और कहां इस्तेमाल किया गया. लेकिन माना जाता है कि टाइम कैप्सूल का आइडिया और उसका इस्तेमाल उससे कहीं पुराना है, जितना अब तक समझा जाता है. टाइम कैप्सूल मिलने की खबरें अकसर सामने आती रही हैं. स्पेन के बर्गोस में 30 नवंबर 2017 को करीब 400 साल पुराना टाइम कैप्सूल मिला था. यह यीशु की मूर्ति के रूप में था. इसके अंदर साल 1777 के दौर की सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक जानकारियां थीं. लेकिन पहला मॉर्डन टाइम कैप्सूल माना जाता है द क्रिप्ट ऑफ सिविलाइजेशन को।

भारत में कितने टाइम कैप्सूल हैं

-पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 15 अगस्त 1972 को लालकिले परिसर में एक टाइम कैप्सूल डाला था. इंदिरा सरकार ने इसे कालपत्र नाम दिया था. दावा किया गया कि इसमें आजादी के बाद के भारत का इतिहास दर्ज है. इस कालपत्र को 1000 साल बाद खोला जाना था. इस कालपत्र पर जमकर राजनीति हुई थी. विपक्ष ने आरोप लगाया था कि इसमें गांधी परिवार का महिमामंडन किया गया है. साल 1977 में जनता सरकार ने इसे निकलवाया लेकिन इसमें क्या था कभी सार्वजनिक नहीं किया गया।

-6 मार्च 2010 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल की मौजूदगी में आईआईटी कानपुर के ऑडिटोरियम के पास एक टाइम कैप्सूल डाला गया था।

-महात्मा मंदिर, गांधीनगर, जिसमें गुजरात का इतिहास शामिल है, इसकी स्थापना के 50 साल पूरे हो गए हैं. 2010 में स्थापित किया गया था।

-साल 2014 में साउथ मुंबई के फोर्ड जिले के एलेक्जेंड्रा गर्ल्स इंग्लिश इंस्टिट्यूट में एक टाइम कैप्सूल डाला गया था. इसे 1 सितंबर 2062 में खोला जाएगा।

-पंजाब के जालंधर स्थित लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के परिसर में एक टाइम कैप्सूल डाला गया था. 8x8 के इस कैप्सूल बॉक्स को लकड़ी और एल्युमीनियम से बनाया गया था. इसे जमीन में 10 फुट गहराई में गाड़ा गया. इसमें एक स्मार्टफोन, लैंडलाइन फोन, वीसीआर, स्टीरियो प्लेयर, स्टॉप वॉच, कंप्यूटर पार्ट्स जैसे हार्ड डिस्क, माउस, लैपटॉप, सीपीयू, मदरबोर्ड, हार्ड डिस्क, कुछ डॉक्युमेंट्रीज और मूवीज, कैमरा, साइंस की किताबें इत्यादि 100 साल के लिए गाड़ दिए गए।


अगर टाइम कैप्सूल को किसी खास समय के म्यूजियम में भी तब्दील किया जाए तब भी उससे फायदा नहीं होगा क्योंकि उन्हें एक निश्चित समय के लिए सील कर दिया जाता है. उनकी लॉन्च की तारीख से लेकर खोले जाने के बीच जो पीढ़ियां होती हैं, उनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाती।

लेकिन इन सबके बावजूद टाइम कैप्सूल को लेकर उत्सुकता बनी रहती है क्योंकि काल के कपाल पर ये ऐसी जानकारियां दर्ज कर देते हैं, जिनके नए गीत भविष्य को सुनाई देते हैं।




No comments