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मुख्यमंत्री ने कहा गोली चलाने का आदेश नहीं दूँगा , सरकार जानी है तो जाए।


  • मै गोली चलाने का आदेश नहीं दूँगा - नहीं दूँगा सरकार जानी है तो जाए..!! 
  •  "कल्याण सिंह" आज जब राम मंदिर के शिलान्यास की तारीख की घोषणा हुई तो आपकी याद आ गयी ।

6 दिसंबर, 1992 की दोपहर कल्याण सिंह अपने निवास स्थान 5 कालिदास मार्ग पर अपने दो मंत्रिमंडलीय सहयोगियों लालजी टंडन और ओमप्रकाश सिंह के साथ एक टेलिविजन के सामने बैठे हुए थे।
मुख्यमंत्री के कमरे के बाहर उनके प्रधान सचिव योगेंद्र नारायण भी मौजूद थे. वहाँ मौजूद सब लोगों को भोजन परोसा जा रहा था. अचानक सबने देखा कि कई कार सेवक बाबरी  के गुंबद पर चढ़ गए और कुदालों से उसे तोड़ने लगे।
हांलाकि वहाँ पर्याप्त संख्या में अर्ध सैनिक बल तैनात थे, लेकिन कारसेवकों ने उनके और बाबरी  के बीच एक घेरा सा बना दिया था, ताकि वो वहाँ तक पहुंच न पाएं।
उस समय कल्याण सिंह के प्रधान सचिव रहे योगेंद्र नारायण बताते हैं, 'तभी उस समय उत्तर प्रदेश पुलिस के महानिदेशक एस एम त्रिपाठी भागते हुए आए और उन्होंने मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से तुरंत मिलने की अनुमति मांगी. जब मैंने अंदर संदेश भिजवाया तो मुख्यमंत्री ने उन्हें भोजन समाप्त होने तक इंतज़ार करने के लिए कहा।

वो कहते हैं, 'थोड़ी देर बाद जब त्रिपाठी अंदर गए तो उन्होंने उन्हें देखते ही कार सेवकों पर गोली चलाने की अनुमति मांगी, ताकि बाबरी को गिरने से बचाया जा सके. कल्याण सिंह ने मेरे सामने उनसे पूछा कि अगर गोली चलाई जाती है तो क्या बहुत से कार सेवक मारे जाएंगे।

त्रिपाठी ने जवाब दिया, 'जी हाँ बहुत से लोग मरेंगे।

कल्याण सिंह ने तब उनसे कहा कि 'मैं आपको गोली चलाने की अनुमति नहीं दूंगा. आप दूसरे माध्यमों जैसे लाठीचार्ज या आँसू गैस से हालात पर नियंत्रण करने की कोशिश करिए।

योगेंद्र नारायण आगे कहते हैं, 'डीजीपी ये सुन कर वापस अपने दफ़्तर लौट गए।
 "शायद DGP ने उनके हृदय की आवाज सुन ली थी जै ही बाबरी  की आखिरी ईंट गिरी, कल्याण सिंह ने अपना राइटिंग पैड मंगवाया और अपने हाथों से अपना त्याग पत्र लिखा और उसे ले कर खुद राज्यपाल के यहाँ पहुंच गए.' 

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