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मीलों का फासला तय कर घर लौटे; अपनों के लिए कोई मचान पर तो किसी ने खुद को खेत में किया क्वारैंटाइन, कहीं तिरस्कार भी सहना पड़ा

  • उत्तर प्रदेश में शुक्रवार तक ट्रेनों से 21 लाख प्रवासी श्रमिक आए, इन्हें होम क्वारैंटाइन करने का दावा
  • लॉकडाउन के चौथे फेज में सबसे ज्यादा श्रमिक यूपी लौटे, लोगों ने गांव से बाहर खेतों को क्वारैंटाइन के लिए सबसे सुरक्षित माना 

कोरोनावायरस महामारी के बीच लॉकडाउन के 66 दिनों में अब तक भूख, बेबसी, तिरस्कार की तमाम ऐसी कहानियां सामने आईं, जिसने कभी दिलों को झकझोरा तो कभी निराशा के बादल उमड़ने लगे। रोजी रोटी का संकट सामने आया तो हजारों प्रवासी श्रमिकों ने परिवार के साथ हजारों किमी का फासला पैदल ही तय कर डाला।
दर दर की ठोकरें खाते हुए कई दिन और रातें भूखे पेट रहकर जब ये प्रवासी मजदूर अपने घरों की दहलीज तक पहुंचे तो उन्हें यह डर सताने लगा कि, कहीं परिवार के अपनों की जान जोखिम में न पड़ जाए, इसलिए 14 दिन घर से बाहर रहने का निर्णय लेना पड़ा। कई जगहों पर उन्हें अपनों का ही विरोध झेलना पड़ा।
पुरे प्रदेश भर में कई श्रमिक परिवार आए हैं। लेकिन, लोगों ने उन्हें गांव में घुसने से भी रोक दिया। अपनों का विरोध देखकर श्रमिकों के घर लौटने की खुशी एक पल में चकनाचूर हो गई। आसपास कोई क्वारैंटाइन सेंटर नहीं था। प्रधान ने भी एक न सुनी।
ऐसे में श्रमिकों ने गांव के बाहर सड़क पर ही खुले आसमान के नीचे अपना आशियाना बना लिया और 13 दिन से लगातार भीषण धूप और लपट के थपेड़ों को सहने को मजबूर हैं। घरवालों ने दिल पर पत्थर रखकर  गांव के बाहर रहने के लिए मजबूर कर दिया है। 

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