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अयोध्या राम मंदिर भूमि पूजन में पीएम मोदी के जजमान बनने के मायने क्या है

अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं जजमान बने थे, जजमान के तौर पर उन्होंने पूजा की. जजमान बनना अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है. यह उनके भाषण से भी महत्वपूर्ण है.

हम समझ रहे थे कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से जो ट्रस्ट बना है, ये उसका कार्यक्रम है, उसका कोई ट्रस्टी या अध्यक्ष पूजन करेगा और प्रधानमंत्री मुख्य अतिथि होंगे, जैसा कि होता है.

लेकिन प्रधानमंत्री ने अपनी समझ से खुद जजमान बनना उचित समझा. जब स्वयं प्रधानमंत्री जजमान बनते हैं तो उसकी व्याख्या इस तरह से की जा सकती है कि यह सरकार का प्रोजेक्ट है.

जो भाषण उन्होंने दिए और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने जो कहा, वो काफ़ी आश्वस्त करने वाले हैं. इस दौरान हम देख रहे हैं कि सोशल मीडिया पर तरह-तरह की बातें हो रही हैं और कई मुद्दे उछाले जा रहे हैं जिनमें मथुरा, बनारस और हिंदू राष्ट्र का भी मुद्दा है. ये सब मुद्दे उछाले जा रहे हैं.

उस माहौल में उनका भाषण आश्वासन देने वाला है क्योंकि उन्होंने कहा कि भेदभाव नहीं होगा किसी के साथ और सबका ख्याल रखा जाएगा.

उन्होंने राम के आदर्शों की बार-बार व्याख्या की और जो जयश्री राम का नारा था, उसकी जगह उन्होंने जय सिया राम बार-बार कहा. हम लोग रामलीला में जय सिया राम का नारा ही लगाते थे.

यह सब बातें अपनी जगह तो हैं ही, उन्होंने ये भी कहा कि इससे भारत एक शक्ति के रूप में बनकर उभरेगा.

चूंकि इस मुद्दे से देश के लोगों की आस्था जुड़ी है, भावनाएं जुड़ीं थीं. तमाम जगहों से मिट्टी, जल और शिलाएं आई हैं तो उससे बड़ी मात्रा में ऊर्जा पैदा हुई है, अब प्रधानमंत्री की ज़िम्मेदारी हैं कि वो इस ऊर्जा को सही दिशा में ले जाएं. वरना पहले की तरह विवादित एजेंडा सामने आता है जो पहले था तो समस्याएं होंगी.

दूसरे एक बात यह भी है कि आज जो मंदिर निर्माण की शुभ घड़ी आयी वो सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से आयी. क़ानून से परे जाकर शांति की भावना से सुप्रीम कोर्ट ने ये फ़ैसला दिया था  उम्मीद की जा रही थी कि ये राष्ट्र के प्रतीक के तौर पर सबको जोड़ने वाली जगह बनेगी. क्योंकि राम किसी एक जाति या धर्म के नहीं हैं. वे भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं लेकिन ऐसा नहीं हुआ.


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